नई दिल्ली (आईएएनएस)। दुनियाभर में 5000 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले खतरनाक कोरोना वायरस से फैली महामारी से लड़ने के लिए केंद्र सरकार 123 साल पुराने कानून 'महामारी रोग अधिनियम 1897' का इस्तेमाल कर रही है। ध्यान रहे कि कोरोना वायरस की उम्र 6 महीने से भी कम है। इस कानून का भारत सरकार ने स्वाइन फ्लू, हैजा, मलेरिया और डेंगू जैसे विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए ऐतिहासिक रूप से इस्तेमाल किया है।
इसमें कुछ भी गलत नहीं मानते संविधान के जानकार
संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि सरकार इस बात पर विश्वास करती है कि औपनिवेशिक काल के बनाए कानून से बीमारियों की रोकथाम में मदद मिल रही है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। तीन दिन पहले कैबिनेट सचिव बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस कानून के सेक्शन 2 के प्रावधानों को लागू कर दिया है, इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी सबको माननी होगी।
रोकथाम के लिए महामारी रोग अधिनियम, 1897 लागू
मौजूदा समय में देश में फैली बीमारियों की रोकथाम के लिए अब भी 'महामारी रोग अधिनियम, 1897&य का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है। स्वाइन फ्लू, डेंगू और हैजा की रोकथाम के लिए रूटीन में इस कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्तमान में भारत जानलेवा वायरस से लड़ रहा है। कोविड-19 की वजह से भारत में 2 लोगों की जान जा चुकी है और जांच के बाद 84 लोग कोरोना वायरस पाॅजिटिव पाए गए हैं यानी वे इससे संक्रमित हैं।
देश में बीमारियों की रोकथाम में कारगर
अभी तक की रिपोर्टों पर गौर करें तो दुनियाभर में 119,100 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। संविधान के जानकारों का कहना है कि वर्तमान में बहुत सारे औपनिवेशिक काल में बने कानून चल रहे हैं। सालों से सरकारें इस कानून के तहत जानलेवा बीमारियों की अच्छी तरह से रोकथाम और बचाव करने में सक्षम रही हैं।
आईपीसी भी अंग्रेजों के जमाने में बना
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) भी अंग्रेजों के समय का है। जनगणना कानून भी आजादी से पहले का बना है और आजतक चल रहा है। इतना ही नहीं अकाल अधिनियम भी उसी समय का बना हुआ है। यदि सरकार को लगता है कि ये कानून आज भी उतने ही कारगर हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यह तय करना सरकार का काम है।
लाॅ कमीशन देती है सरकार को संशोधन के सुझाव
संविधान के जानकार तथा लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है यदि सरकार बिना किसी संशोधन के औपनिवेशिक काल में बने कानून को अब भी लागू रहने दे। आमतौर पर लाॅ कमीशन सरकारों को कानून की वर्तमान में प्रासंगिकता को लेकर जरूरत पड़ने पर संशोधन के सुझाव देती है। संविधान के दोनों जानकार मानते हैं कि कानून सिर्फ इसलिए नहीं बदला जाना चाहिए कि वह आजादी के पहले का बना है।
कब-कब लागू किया गया महामारी रोग अधिनियम
रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में गुजरात के एक गांव में फैले हैजा की रोकथाम के लिए इस कानून काे लागू किया गया था। 2015 में चंडीगढ़ में डेंगू और मलेरिया पर काबू करने के लिए इस कानून का उपयोग हुआ था। 2009 में पुणे में स्वाइन फ्लू को नियंत्रित करने के लिए इस कानून को लागू किया गया था।
क्या है महामारी रोग अधिनियम, 1897
इस कानून का सेक्शन 2 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को महामारी की रोकथाम के लिए विशेष उपाय करने की शक्ति देता है। कानून के इस सेक्शन के मुताबिक, सरकार रोग से बचाव के लिए जरूरी नियमावली बना सकती है, यात्रा पर रोक लगा सकती है, लोगों को जांच, उपचार और प्रवास के लिए बाध्य कर सकती है। उल्लंघन पर जुर्माने से दंडित कर सकती है।
सेक्शन 1 : जब सरकार इस बात से संतुष्ट हो कि किसी बीमारी की रोकथाम में वर्तमान कानून या नियम पर्याप्त नहीं हैं और उसके महामारी के रूप में फैलने और जानलेवा होने की आशंका है तो यह सेक्शन किसी व्यक्ति या किसी खास वर्ग के व्यक्ति को पब्लिक नोटिस जारी करके रोकथाम या बचाव के जरूरी उपाय करने की शक्ति प्रदान करता है।
सेक्शन 2 : सरकारों को रोकथाम के जरूरी उपाय करने की शक्ति देता है, जिसमें किसी भी व्यक्ति की जांच, संक्रमित व्यक्ति के उपचार, यात्रा पर रोक, प्रवास या अलग रखने संबंधी जैसे कदम उठाना शामिल है।
सेक्शन 3 : के तहत उल्लंघन करने वाले के खिलाफ जुर्माना या आईपीसी, 1860 की धारा 188 के तहत यह दंडनीय अपराध माना जाएगा।
सेक्शन 4 : के तहत कानून लागू कराने वाले व्यक्ति को संरक्षण प्रदान करता है यानी उसके खिलाफ वाद दाखिल या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।
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