उर्दू और हिंदी के अजीम शायर
निदा फाजली उर्दू और हिंदी दुनिया के अजीम शायरों और गीतकारों में शुमार होते थे। उनके गीत काफी सरल माने जाते हैं, जो हर एक की जुबान पर चढ़े रहते थे। प्रतिगतिशील वामपंथी आंदोलन से जुड़े रहे निदा फाजली को हर तबके से प्यार मिला और उनके गीतों को काफी पसंद भी किया गया।
देशी शब्दों का इस्तेमाल
साल 1964 में नौकरी की तलाश में निदा फाजली मुंबई गए और फिर वहीं के होकर रह गए। उन्होंने अपने शुरुआती करियर के दौरान धर्मयुग और बिलिट मैगजीन के लिए लिखा। तभी उनके लिखने के अंदाज ने फिल्मी दुनिया के दिग्गजों को कायल किया और फिर बॉलीवुड से जो रिश्ता बना हमेशा कायम रहा। निदा फाजली ने गज़ल और गीतों के अलावा दोहा और नज़्में भी लिखी हैं और लोगों ने जमकर सराहा है। उनकी शायरी की एक खास खूबी ये रही है कि उनके अ’शार में फारसी शब्दों के बजाय देशी शब्दों और जुबान का इस्तेमाल बहुत ही उमदा तरीके से किया गया है।
फाजली द्वारा लिखी कुछ मशहूर लाइनें....
1. क्या हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं, यूं किया जाए कभी खुद को रुलाया जाए
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
2. अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
3. अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग जमाने वाला
4. इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्म जलाने से रही
5. कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएं रात हो गई
6. कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
7. कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है
8. कोशिश भी कर उम्मीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर
9. खुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक्त पे कुछ अपना इख्तिकार भी रख
10. तुम से छूट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए
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